Sunday, 6 May 2012

नसबंदी करवाना ठीक?

बेहतर तो यही होगा कि नसबंदी पति ही कराए। महिला नसबंदी के मुकाबले पुरुष नसबंदी काफी आसान होती है और कम समय में हो जाती है। इसके अलावा उसको वापस नॉर्मल पोजिशन में लाना भी आसान होता है। पुरुष नसबंदी करवाने से नामर्दी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अंडकोष में दो तरह के सेल्स होते हैं। एक में से हॉर्मोंस बनते हैं जिनकी वजह से कामेच्छा व कामशक्ति बनी रहती है। दूसरी तरह के सेल्स से शुक्राणु बनते हैं और वह नस के जरिये मूत्रमार्ग से क्लाइमैक्स के वक्त बाहर आते हैं। 
नसबंदी कराने के बाद कामेच्छा व कामशक्ति पहले जैसी ही बनी रहेगी। वीर्य की मात्रा भी लगभग उतनी ही रहेगी क्योंकि कामशक्ति व कामेच्छा जिस चीज पर निर्भर करती है वह तो हॉर्मोंस हैं, जो सीधे खून में चले जाते हैं। शुक्राणुओं का हिस्सा पूरे वीर्य की मात्रा में एक प्रतिशत से भी कम होता है। बाकी के वीर्य में जो दव्य होता है, वह शुक्राशय व प्रोस्टेट में से आता है। नसबंदी करने से कामेच्छा व कामशक्ति पर कोई खराब असर नहीं पड़ता। नसबंदी कराने के बाद क्लाइमैक्स के वक्त जो वीर्य बाहर आता है, उसमें शुक्राणु नहीं होते। 

अगर कोई आदमी मर्दानगी को पितृत्व की क्षमता समझता हो तो उसे यह गलतफहमी दूर करने के बाद ही नसबंदी करवानी चाहिए। नसबंदी आजकल सरकारी अस्पतालों में मुफ्त हो जाती है। नसबंदी कराने से पहले पति-पत्नी, दोनों को डॉक्टर से मिल लेना चाहिए। ऑपरेशन का तरीका समझना चाहिए। उन्हें इस बात से निश्चिंत हो जाना चाहिए कि उनकी सेक्स लाइफ वैसी ही रहेगी, जैसी नसबंदी से पहले थी।

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