उत्तर : अपराध बोध तो होगा ही। अपराध बोध होना ही तो यह संकेत है कि यह काम गलत है। वरना अपराध बोध क्यों होता, अंतरात्मा धिक्कारती ही क्यों? कोई गलत काम जब पहली बार किया जाता है, तो उसे भूल माना जा सकता है पर दूसरी बार किया जाए तो भूल नहीं, अपराध माना जाता है। अब जो भी हस्तमैथुन करना गलत मानते हुए यह काम करेगा, वह अपराध बोध का अनुभव करेगा ही, इसमें गलत क्या है, अस्वाभाविक क्या है। प्रगतिशील और उन्मुक्त यौन का समर्थक होकर हस्तमैथुन करेगा वह भी अपराध बोध का अनुभव करेगा। अपराध का बोध होना ही तो अंतरात्मा की चेतावनी होती है कि सावधान! यह काम गलत है, अपराध है। अब कोई अंतरात्मा की आवाज को दबाता रहे, कुचलता रहे और मनमानी करता रहे तो उसे कौन रोक सकता है।
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